जनरल बिपिन रावत को यूं ही नहीं मिली तीनों सेनाओं की साझा कमान

जनरल बिपिन रावत को यूं ही नहीं मिली तीनों सेनाओं की साझा कमान




सार



  • युद्ध और सामान्य परिस्थितियों का पर्याप्त अनुभव रखते हैं जनरल रावत

  • उत्तराखंड में जन्मे जनरल रावत के पिता लक्ष्मण सिंह रावत भी सेना में रहे

  • पहली पोस्टिंग मिजोरम में और उन्होंने इस बटालियन का नेतृत्व भी किया



 

विस्तार


देश के पहले चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (सीडीएस) के रूप में निवर्तमान सेना प्रमुख जनरल बिपिन रावत को साझा सेनाओं की कमान यूं ही नहीं मिली। 2016 में सेना प्रमुख बने जनरल रावत 31 दिसंबर को इस पद से रिटायर होने के साथ ही चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ का बैटन संभालने जा रहे हैं। अब भी वे तीनों सैन्य प्रमुखों की कमेटी के चेयरमैन हैं। सेना में अलग-अलग पदों पर रहते हुए उनके पास युद्ध और सामान्य परिस्थितियों का पर्याप्त अनुभव है। सीडीएस देश के रक्षा तंत्र में नई शुरुआत है और जनरल रावत की योग्यता और अनुभव ने उन्हें यहां तक पहुंचाया है।

शुरू से ही अचीवर 


16 मार्च, 1958 को उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल में पैदा हुए जनरल रावत के पिता लक्ष्मण सिंह रावत भी सेना में रहे हैं। वे लेफ्टिनेंट जनरल पद से रिटायर हुए। स्कूली शिक्षा के बाद बिपिन रावत ने इंडियन मिलिट्री अकेडमी, देहरादून और फिर डिफेंस स्टाफ कॉलेज में प्रवेश लिया। उन्हें 16 दिसंबर, 1978 को 11 गोरखा रायफल्स की 5वीं बटालियन में कमीशन मिला। उनके पिता भी इसी बटालियन का हिस्सा रहे थे। उनकी पहली पोस्टिंग मिजोरम में हुई थी और उन्होंने इस बटालियन का नेतृत्व भी किया। इस दौरान उनकी बटालियन को उत्तर पूर्व की सर्वश्रेष्ठ बटालियन 
 

चुना गया। 

चुनौतियों से वाकिफ 


अपने करियर में जनरल रावत पूर्वी क्षेत्र में लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल, कश्मीर घाटी के इंफेंट्री डिवीजन में राष्ट्रीय राइफल्स सेक्टर के साथ डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो में बहुराष्ट्रीय ब्रिगेड के मुखिया रह चुके हैं। जनरल रावत को अशांत इलाकों में काम करने का लंबा अनुभव है। मिलिट्री फोर्स के पुनर्गठन, पश्चिमी क्षेत्र में आतंकवाद और पूर्वोत्तर में जारी संघर्ष को उन्होंने करीब से देखा है।  

सरकार के पसंदीदा 


इसमें भी कोई संदेह नहीं कि जनरल रावत केंद्र सरकार के पसंदीदा रहे हैं। दिसंबर, 2016 में जब उन्हें सेना प्रमुख बनाया गया था, तब उन से वरिष्ठ दो अन्य अफसर इस पद के दावेदार थे, लेकिन सरकार ने उन दोनों के दावों को दरकिनार कर दिया।  बता दें कि गोरखा ब्रिगेड में कमीशन पाकर सेना प्रमुख के पद तक पहुंचने वाले से पांचवें अफसर हैं। 

सोचने का अलग अंदाज 


जनरल रावत देश की सुरक्षा व्यवस्था और खासकर सेना के सामने मौजूद चुनौतियों से परिचित हैं। संसाधनों की कमी के बीच सैनिकों को जिम्मेदारियां  निभाने में कितनी मुश्किलें आती हैं, वे यह भी जानते हैं, लेकिन करीब 42 साल लंबे करियर में उनकी कामयाबी का सबसे बड़ा राज यह है कि वे चीजों को एकपक्षीय नजरिये से नहीं देखते। सेना प्रमुख रहते हुए वे सैन्य अधिकारियों को मिलने वाली सुविधाओं पर आपत्ति जता चुके हैं। वे सेना और आम लोगों के बीच मेलजोल के भी पक्षधर हैं। वे  सेना को मिलने वाले विशेषाधिकारों के खिलाफ हैं। सैन्य विभाग का प्रमुख होने के साथ रक्षामंत्री के सलाहकार की जिम्मेदारी भी सीडीएस के कंधों पर होगी। 

15 अगस्त को की थी घोषणा


पीएम नरेंद्र मोदी ने बीते स्वतंत्रता दिवस पर चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (सीडीएस) की नियुक्ति की घोषणा की थी। सीसीएस ने 24 दिसंबर को पद सृजन की मंजूरी दी थी। पीएम की घोषणा के बाद एनएसए अजित डोभाल की अध्यक्षता में एक कार्यान्वयन समिति का गठन किया गया था। 

सेना के लिए गौरव का पल 


भारतीय सेना ने ट्वीट कर जनरल रावत की नियुक्ति को गर्व से भरा ऐतिहासिक पल बताते हुए कहा, यह नियुक्ति सशस्त्र बलों के बीच तालमेल, एकजुटता और समन्वय को बढ़ावा देगी। वहीं, केंद्रीय मंत्री कृष्णपाल गुर्जर, रामविलास पासवान, पंजाब के सीएम कैप्टन अमरिंदर सिंह ने जनरल रावत को सबसे पहले बधाई देने वालों में रहे। उत्तराखंड के सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत ने पूरे प्रदेश को इस गौरव के लिए बधाई दी। रावत उत्तराखंड के ही रहने वाले हैं।

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