भारत में CAA पर आंसू बहा रही यूरोपीय संसद पहले अपना बदहाल घर ठीक करे, एक बार पाकिस्तान को ही देख ले
यूरोपीय देशों की यूनियन अब एशियाई देशों की चिंता में दुबली हो रही है। आख़िरकार ब्रिटेन जैसा सैंतालीस साल पुराना सदस्य देश कल ही यूरोपीय यूनियन से बाहर हो गया। बचे सत्ताईस देश अब अपनी अपनी जाजम किसी तरह खिसकने से बचाए हुए हैं। ऐसे में वह अपनी सीमा से बाहर जाकर भारत के नागरिक संशोधन क़ानून की चिंता में दुबली हो रही है। भले ही उसने मतदान फ़िलहाल भारतीय विदेश मंत्री से चर्चा होने तक टाल दिया हो ,लेकिन यह कहने में कोई गुरेज नहीं होना चाहिए कि वह शरणार्थी समस्या को समग्र नज़रिए से नहीं देख रही है।
यूरोपीय यूनियन अपने सदस्य देशों की भलाई करने के लिए बनाई गई थी न कि संयुक्त राष्ट्र के समानांतर संगठन की तरह व्यवहार करने के लिए।क्या इस संघ के अधिवक्ता अपने संविधान के पन्ने पलट कर देखेंगे कि कैसे 1957 की रोम संधि सिर्फ़ कोयला और स्टील के कारोबार की ख़ातिर इसका गठन किया गया था। उसके बाद 1993 की मास्ट्रिख संधि भी एकल खिड़की से सदस्य देशों के बीच व्यापार को बढ़ावा देती थी। जब 2007 में लिस्बन समझौता हुआ तो उसमें भी सदस्यों के अलावा किसी की चिंता करने की इबारत नहीं लिखी गई थी।