उद्धव ठाकरे का भाजपा पर निशाना, कहा- मैंने उनसे चांद-तारे नहीं मांगे थे

उद्धव ठाकरे का भाजपा पर निशाना, कहा- मैंने उनसे चांद-तारे नहीं मांगे थे



महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने भाजपा पर निशाना साधा है। उन्होंने भाजपा का साथ छोड़कर कांग्रेस, राष्ट्रवादी कांग्रेस से हाथ मिलाकर सरकार बनाने को लेकर कहा है कि मैंने भाजपा से चांद-तारे नहीं मांगे थे। यदि वह मेरी बात मान जाते तो आज मैं नहीं बल्कि कोई और शिवसैनिक मुख्यमंत्री होता। उन्होंने कहा कि किसी को टिप्पणी करनी है तो खुशी से करे। मैं अब परवाह नहीं करता। यह बातें मुख्यमंत्री ने सामना को दिए साक्षात्कार में कहीं।  यह बातें मुख्यमंत्री ने सामना को दिए साक्षात्कार में कहीं। 


 

महाराष्ट्र की राजनीति के भूकंप का झटका दिल्ली तक लगा। देश को नई दिशा मिली। परदे के पीछे और सामने निश्चित तौर पर क्या हुआ? इस पर ठाकरे ने कहा, ‘मैंने क्या मांगा था भाजपा से? जो तय था वही न! मैंने उनसे चांद-तारे मांगे थे क्या?’ उन्होंने कहा, ‘भाजपा अगर दिए गए वादों को निभाती तो मैं मुख्यमंत्री पद पर दिखाई नहीं देता। कोई शिवसैनिक वहां पर विराजमान हुआ होता। लेकिन ये उस दिशा में उठाया गया पहला कदम है!’

आपने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली यह बड़ा झटका था, ऐसा नहीं लगता क्या। इसपर महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री ने कहा, 'मुख्यमंत्री पद को स्वीकारना न ही मेरे लिए झटका था और न ही मेरा सपना था। अत्यंत ईमानदारी से मैं ये कबूल करता हूं कि मैं शिवसेना प्रमुख का एक स्वप्न- फिर उसमें ‘सामना’ का योगदान होगा, शिवसेना का सफर होगा और मुझ तक सीमित कहें तो मैं मतलब स्वयं उद्धव द्वारा उनके पिता मतलब बालासाहेब को दिया गया वचन! इस वचनपूर्ति के लिए किसी भी स्तर तक जाने की मेरी तैयारी थी। उससे भी आगे जाकर एक बात मैं स्पष्ट करता हूं कि मेरा मुख्यमंत्री पद वचनपूर्ति नहीं बल्कि वचनपूर्ति की दिशा में उठाया गया एक कदम है। उस कदम को उस दिशा की ओर बढ़ाने के लिए मैंने मन से किसी भी स्तर तक जाने का तय किया था। अपने पिता को दिए गए वचन को पूरा करना ही है और मैं वो करूंगा ही।'

लेकिन इस झटके से महाराष्ट्र उबरा है क्या इसपर उन्होंने कहा, 'झटके कई प्रकार के होते हैं। लोगों को ये समझा है कि नहीं। पसंद आया है कि नहीं, ये महत्वपूर्ण हिस्सा है। मैंने कई बार इस मामले पर बोला है और जनता भी इसे पूरी तरह से समझी है। वचन देने और निभाने में फर्क है। वचन भंग होने पर स्वाभाविक ही है कि दुख है, गुस्सा है। उन्होंने किसके लिए ये किया? क्यों वचन दिया और क्यों मुकर गए? फिर उनके द्वारा इस तरह से वचन से मुकरने के बाद मेरे पास दूसरा विकल्प नहीं था।'


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